Friday, October 12, 2018

रफ़ाल सौदा मोदी सरकार का सबसे बड़ा सिरदर्द?

यह एक नया सौदा था क्योंकि विमानों की क़ीमत, संख्या और शर्तें बदल गईं थी. अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने नियमों का पालन नहीं किया.
सवाल ये है कि अगर यह नया ऑर्डर था तो नियमों के मुताबिक टेंडर क्यों जारी नहीं किए गए? यह भी पूछा जा रहा है कि इस फ़ैसले में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी की क्या भूमिका थी? अगर नहीं थी, तो क्यों नहीं थी?
तथ्य यह है कि डासो एविएशन के साथ सौदे की घोषणा होने के क़रीब एक साल बाद कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने इसे अपनी औपचारिक मंज़ूरी दी.
विमान की क़ीमत को लेकर सरकार संसद में जानकारी देने से कतराती रही है. सरकार ने विमान की कीमत बताने से यह कहते हुए इनकार किया कि यह सुरक्षा और गोपनीयता का मामला है. आरोप लगाने वाले बीजेपी से जुड़े रहे दोनों पूर्व कैबिनेट मंत्रियों का कहना है कि नियमों के मुताबिक, गोपनीयता सिर्फ़ विमान की तकनीकी जानकारी के बारे में बरती जाती है, कीमत के बारे में नहीं.
अरुण शौरी का कहना है कि लोकसभा में एक सवाल के जवाब में, रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने 36 विमानों वाला सौदा होने से पहले बताया था कि एक विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए के करीब होगी. अरुण शौरी पूछ रहे हैं कि हर विमान का दाम लगभग एक हज़ार करोड़ रुपए बढ़ गया है, अब एक विमान की कीमत 1600 करोड़ रुपए के क़रीब है.
क्या सरकार की ज़िम्मेदारी देश को यह बताना नहीं है कि ख़ज़ाने से लगभग 36 हज़ार करोड़ रुपए ज़्यादा क्यों ख़र्च हो रहे हैं? सरकार के मंत्रियों ने बचाव में कहा है कि विमान में बहुत सारे साज़ो-सामान और हथियार अलग से लगाए गए हैं इसलिए क़ीमत बढ़ी है.
संसद में दी गई जानकारी के आधार पर लोग आरोप लगा रहे हैं कि जो पिछला सौदा हुआ था उसमें सभी अतिरिक्त साज़ो-सामान और हथियारों की भी क़ीमत में शामिल थी. सरकार को बताना चाहिए कि क़ीमत का सच क्या है?
जिस दिन नरेंद्र मोदी ने पेरिस में विमान ख़रीद के समझौते पर हस्ताक्षर किए, वह तारीख़ थी 10 अप्रैल 2015. 25 मार्च 2015 को रिलायंस ने रक्षा क्षेत्र की एक कंपनी बनाई जिसे सिर्फ़ 15 दिन बाद लगभग 30 हज़ार करोड़ का ठेका मिल गया.
एक ऐसी कंपनी जिसने रक्षा उपकरण बनाने के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया है, दिल्ली मेट्रो हो या टेलीकॉम का बिज़नेस, कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी का ज़िक्र भारी क़र्ज़ की वजह से भी होता रहा है. ऐसे में फ्रांसीसी कंपनी अपनी मर्ज़ी से ऐसा पार्टनर क्यों चुनेगी यह एक पहेली है.
सौदे के समय फ्रांस के राष्ट्रपति रहे फ्रांस्वा ओलांद ने एक इंटरव्यू में कहा कि 'रिलायंस के नाम की पेशकश भारत की ओर से हुई थी, उनके सामने कोई और विकल्प नहीं था'. सफ़ाई में सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि यह 'राहुल-ओलांद की जुगलबंदी' है, एक 'साज़िश' है.
मोदी सरकार के मंत्रियों का कहना है कि इसमें सरकार का कोई रोल नहीं है, लेकिन क्या उसे 'क्रोनी कैपिटलिज़्म' के गंभीर आरोप पर खुलकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए? मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि यह 'परसेप्शन' की लड़ाई है जिसमें कांग्रेस झूठ बोल रही है यानी जितने सवाल पूछे जा रहे हैं उनका जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं है, सिर्फ़ ये परसेप्शन बनाने की ज़रूरत है कि सरकार पाक-साफ़ है या कांग्रेस ज़्यादा गंदी है.
राहुल गांधी ने कहा है कि "मोदी ने देश के युवाओं और वायु सेना से तीस हज़ार करोड़ रुपए छीनकर अनिल अंबानी को दे दिए हैं." यह ऐसा आरोप है जिसे अब तक मौजूद जानकारी से साबित करना मुमकिन नहीं है लेकिन वे भी परसेप्शन की लड़ाई जीतने में लगे हुए हैं.
भारत में शायद ही कोई बड़ा रक्षा सौदा हुआ हो और उसमें घोटाले, दलाली और रिश्वतख़ोरी के आरोप न लगे हों लेकिन किसी भी मामले में आरोप साबित नहीं होते, सवालों के जवाब नहीं मिलते.
रफ़ाल मामले में भी क्या ऐसा ही होगा? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के जागरूक नागरिकों को टीवी पर 'तू चोर', 'तेरा बाप चोर' वाला ड्रामा देखकर संतोष करना होगा या परसेप्शन की लड़ाई में कुछ तथ्य और तर्क भी सामने आएँगे?

Thursday, October 4, 2018

藏在蓝天白云之下的中国空气质量挑战

中国公众对于雾霾的深恶痛绝促使政府在过去的几年内下大力气治理细颗粒污染物PM2.5。亚洲清洁空气中心一份最新报告显示,2015年74个重点城市PM2.5指数总体降幅14.1%。以我所居住的北京为例,蓝天白云不再是一个“稀缺物品”。

可是,中国清洁空气联盟本月发布的2016年中国空气质量管理评估报告》显示,有一个空气污染指标的在部分省市有明显反常的上升,臭氧( ,  )。

臭氧是一种强氧化性、强刺激性的气体,一定浓度的臭氧吸入人体可以伤害肺组织。臭氧的上升,反映了现在空气质量治理面临的一个新的挑战,即 的治理。

  是挥发性有机物的统称,其室外来源主要是石化行业和汽车尾气以及燃油挥发,本身对人体危害很大,还能跟一些氧化剂生成颗粒相的有机气溶胶。 它和氮氧化物之间的光化学反应会产生臭氧。因此,臭氧超标,会发生在大城市或工业城市。

根据上述报告,2015年有21个省市公布了臭氧数据,其中江苏、上海、浙江、北京、辽宁和河北都比2014年有所上升,江苏上升了8.4%。此外,江苏和北京,上海的臭氧都超过了国家标准,北京甚至超标26.6%。

这是可以理解的,北京,江苏和上海,都是全国最为发达的地区,其中北京的汽车保有量全国第一,而2015年
日均拥堵时间从2014年的1小时55分钟上升到3小时,尾气排放必然增加;而江苏上海在汽车之外,还有无法疏解的重化工业。

不过还有一个原因很容易被人忽略,就是气温的上升。形成臭氧的光化学反应,会在强日照下加剧,再加上高温下燃油的挥发增加,以及拥堵怠速状态下尾气排放上升,臭氧以及其他二次污染必然会随之上升。

根据中国气象局数据,今年六月到八月,全国平均气温比常年同期均偏高,其中8月份的气温,是过去60年同期最高值。

据环科院副院长柴发合所说,有些地方的全年臭氧超标甚至可以达到五六十天。在气温持续上升的趋势下,臭氧造成的空气质量不达标或许会变得更常见。这也就意味着,蓝天白云晴空万里的日子里,空气质量也未必就是好的。

目前中国对 的治理还相对薄弱。2010年 才纳入监管范围,2014年开始数据公开。去年10月,环保部开始实行的
《挥发性有机物排污收费试点办法》,希望通过收费的方式实现VOCs的减排,推进污染控制技术的提升。当前试点行业为石油化工和包装印刷。

但汽车数量还在增加,平均气温升高对臭氧的影响也是随着监测开展才发现的新情况。臭氧污染治理,可能还需要更多新办法的介入。

Monday, October 1, 2018

为什么北京人不爱电动汽车?

公众眼里的电动车是科技行业的“弄潮儿”,特斯拉、分时租赁汽车、智能驾驶,无不是未科技感十足的高端概念。然而,很少人能想象现实中电动汽车竟然成了车主的“弃儿”。

从2014年北京开始发放电动车指标开始,电动车一直呈现获得指标人多但上牌人少的特征。特别是在2014年的4月,发放了1904个指标,而最后只有286个指标变成了真正的车牌,弃号率竟高达85%。也就是说,大部分获得电动车购买指标的人最终放弃了购买。虽然此现象在两内年随着电动车配套设施的完善以及指标的走俏而逐渐得到缓解,但比起汽油车而言这个数字还是高得惊人。
从弄潮儿到弃儿的落差,源于电动汽车带来的用户体验和效用还远未达到用户的期待。这背后是电动汽车被“揠苗助长”导致的产销能力和配套体验的严重脱节。电动车的整体使用环境不友好导致本来对电动车感兴趣且拿到了指标的潜在买家在权衡利弊以后最终放弃了。消费者宁愿放弃牌照也不愿购买电动车,主要原因可以归结为充电难、体验差、政策不确定性大、价格虚高四大因素。

充电难

一般潜在买家在电动车指标中签后的第一项工作就是考察小区停车位是否可以安装充电桩。然而现实情况是,这第一步就是当头一棒。尽管国家三令五申要求物业配合业主安装充电桩,但许多物业仍以不熟悉政策或安全为由拒绝业主的申请。即便有的物业愿意协调,但涉及到工程、规划、电路等多方面的管理,往往十分费时费劲,甚至有的车主协调了六个月没有解决充电桩安装问题,只能放弃指标。此外,对电动汽车需求最旺盛的工薪阶层也很难负担北京昂贵的私人停车位。虽然公共充电桩正在逐渐增多,然而体验却并不友好。不同的充电桩运营商存在兼容性问题,还不说在公共充电桩充电时面临的长时间排队以及停车缴费问题。北京市发改委曾在2014年
承诺安装 个公共充电桩,最后却成了一张空头支票。这一系列问题都使得潜在用户对电动车的使用丧失信心。

体验差

电动车本身的使用体验也让购买者们颇为头疼。在电池普遍有限的续航能力下,更没有多余的能源来满足车主的其他用能需求,特别是在夏天和冬天需要开空调的时间段,开电动车的体验变得十分煎熬。例如,为了省电,几乎所有的电动出租车都不敢开空调,即便在北京的严寒里司机师傅也只能忍耐着。对于开惯了汽油车的车主而言,这确实很难接受。电池里程衰减也是一个很大的问题。此外,媒体曾经
报道,在一次北汽电动车试驾活动中,在高速上正常行驶的E150型号电动车的时速突然毫无征兆地从80公里降到40公里,十分危险。

政策多变

电动车行业尚未完全市场化,政策的不确定性对消费者购买行为影响极大。首先,消费者只有购买政府公布的“
电动车推广目录中”的车型才能享受到政策优惠。市场上可供挑选的电动车型本来不多,而能够被收录到政府目录中的车型又更加稀缺了。最让消费者难以理解的是地方政府的电动车推广目录往往另起炉灶,与国家级别的目录不一致,这使得有的消费者因无法购买到心仪的车型而放弃购买。另外,政策的变动频率过快。免征购置税本身是一个利好政策,但政策的突然出台让那些之前购买电动车的消费者感觉吃亏了,在一定程度上反而抑制了后续的购买行为。

价格高

价格虚高也是让中签者放弃的重要原因。首先,虽然电动车有各种国家和政策补贴,然而抛掉补贴以后的电动车价格仍旧比同档次的汽油车高。而随着2017年国家补贴比2016年减少20%,电动车又迎来了一波涨价潮。其次,电动车的运营成本并非真正比汽油车低。尤其是商业充电桩每度电两块多的价格让许多电动车主直呼“开不起”,再加上充电时的停车费、排队和充电的时间成本,电动车并未做到真正省钱。最后,电动车折旧成本很高。就算购买时有价格补贴,可同样使用五六年之后,燃油车残值40%,电动车只剩20%甚至更低。

电动车不应该只靠一件光鲜的外衣来吸引用户,真正提升电动车的品质并增强用户体验的友好性才是治根之本。另外,在单一发展纯电动车效果有限的情况下,天然气汽车、甲醇汽车、氢燃料电池汽车等较成熟的清洁能源技术也应该成为解决中国城市交通污染问题的备选方案。